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श्री रुक्मिणी बल्लभ धाम सेवा न्यास की स्थापना वर्ष2003 में श्री मदजगदगुरु शंकराचार्य अनंत श्री विभूषित पूज्य पाद स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज, गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) कीसंरक्षण मेंअनंत श्री विभूषित पूज्य स्वामी महानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज द्वारा की गई थी। श्री रुक्मिणी बल्लभ धाम सेवा न्यास संस्कृति की रक्षा के लिए संस्कार और समर्पण के साथ राष्ट्र की सेवा में दृढ संकल्पित है |

पतितपावनी माँ भागरथी के किनारे ,ऋषिमहर्षियों की तपो भूमि, उत्तर प्रदेश के जनपद – बुलंदशहर की तहसील – छोटी काशी अनूपशहर में स्थित अवन्तिकादेवी,महाभारत कालीन पौराणिकस्थलपर, रुक्मिणी वल्लभ धाम सेवान्यास (पंजी.) केतत्वाधान में संस्कार और संस्कृति की रक्षा के लिए संकल्प लिए पिछले कई दशकों से निरतर कार्य किया जा रहा है |

श्री रुक्मिणी बल्ल्भधाम सेवा न्यास द्वारा सचालित संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय एवं गौशाला की स्थापना भारत की प्राचीन वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में अनन्त श्री विभूषित पूज्य पादस्वामी महानन्दब्रह्मचारी जी महाराज द्वारा की गई थी ।

पूज्य महाराज श्री की संरक्षता में संस्कार और संस्कृति की रक्षा के लिए “श्री रुक्मिणी बल्लभ धाम संस्कृत महाविद्यालय एवं विद्यालय” में लगभग 300 विद्यार्थी आवासीय निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे है | वेद, व्याकरण , साहित्य, ज्योतिष के साथ आधुनिक विषय जैसे – गणित , विज्ञान एवं कंप्यूटर आदि शिक्षा प्रदान की जा रही है |

साथ ही गौसेवा प्रकल्प के रूप में "रुक्मिणी वल्लभ धाम गौशाला" विगत्तेरह वर्षों से गौपालन, रक्षणवसंवर्धनकेकार्यनिरन्तरकिया जा रहा है | वर्तमान में विभिन्ननस्लों की एक हजार से भी अधिक गौ उपलब्ध हैं जिन में मुख्यत: शाही वालनस्ल की हैं। उल्लेखनीय है कि गौशाला में किसी प्रकार का व्यावसायिक उत्पादन, धनार्जन नहीं किया जाता है। वैदिक परंपराओं में, गाय को दिव्य माता, गो माता या गौमाता के रूप में देखा जाता था, जो स्वास्थ्य, ज्ञान और समृद्धि के आशीर्वाद से मानव-जीवन को पोषित करती हैं। ‘गावो विश्वस्यमातरः’ अर्थात्गाय विश्व की माता है।

हम मानते हैं कि दुनिया की समस्याओं का समाधान बाह्य (भौतिक) और आंतरिक (आध्यात्मिक) दोनोंहै।हमें ‘गौमाता’ को वैदिक मूल्यों के अनुरूप उनकी मूल उत्कृष्टस्थिति में पुनःस्थापित करने की आवश्यकता है। उनके आशीर्वाद के साथ, “रुक्मिणी वल्ल्भ धाम गौशाला” भारत की प्राचीन वैदिक ‘गोसंस्कृति’ को पुन र्जीवित करने के लिए एक जीवित प्रयोगशाला के रूप में काम कर रही है, और आधुनिक जीवन के सभी पहलुओं में वैदिक प्रतिमानों का परीक्षण करती है, चाहे वह पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि या व्यवसाय ही क्यों नहो।

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